जन की महिमा केतक बरनउ जो प्रभ अपने भाणे।
कहु नानक जिन सतिगुरु भेटिआ से सभ ते भए निकाणे।।
ऐसे गुरमुखों की अवस्था का नाम ही संत भगत गुरसिख है।ऐसे ही गुरमुख प्यारे जिनका जनम पंजाब में हुआ;यह याद रहे कि पंजाब की धरती का कण-कण पवित्र है,जहाँ दसों पातशाहियों के चरण पड़े।
श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी महाराज द्वारा चलाई हुई संस्था के मुखी भाई साहिब भाई दया सिंघ जी,उनसे ग्यारहवें स्थान पर श्रीमान संत बाबा वरियाम सिंघ जी रतवाड़ा साहिब वालों से वरोसाए हुए इस माला के अनमोल और सर्वोत्तम रत्न-
जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ
संत बाबा गुरदीप सिंघ जी जिन्होंने नाम-वाणी के अभ्यास-साधना,सत सबद के अभ्यास द्वारा लाखों ही मनुष्यों को आत्मवदी और हजारों को सिमरन के राह चलाया।लाखों ही प्राणियों को अमृत छकाकर श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के चरणों के साथ जोड़ा।भाई साहिब भाई गुरदास जी ऐसे ही महापुरूषों के बारे में लिखते हैं-
संत भगत गुरसिख हहि है जग तारन आए।।
परउपकारी जगत मैं गुरु मंत्र जपाए।।
जप तप संजम साध करि गुर भगति कमाए।।
तहि सेवक सो परवान है हरि नाम द्रिड़ाए।।
आप जी का जनम ८ अगस्त सन् १९५४ दिन रविवार सबेरे ४ बजे हुआ।आप जी के शरीर का वजन १ किलो १0१ ग्राम था,भाव बहुत ही कम।माता-पिता ने शरीर के नीचे किसी नर्म चीज जैसे रुई वगैरह का सहारा देकर बैठा देना।दो-दो दिन तक आँखें बंद करके माता जी का दूध ना पीया।इसी तरह चार दिन बीत गए तो पिता बापू चरण सिंघ जी को सपने में संदेश दिया कि मैं स्यालकोट वाला गाँव लदेह वाला गुरदीप सिंघ हूँ,तब वहाँ पिछले जनम में माता जी का दूध पीया था,अब नहीं पीना।आप लोग मुझे बकरी का दूध पिलाओ।
बापू चरण सिंघ जी की आँख खुली तो सुबह के चार बजे थे।झट ही स्नान करके गुरूद्वारा साहिब मत्था टेक के,गाँव में ही भाई विरसा सिंघ-सिंगारा सिंघ बकरियों वाले मशहूर थे,उनके पास गए और एक बकरी की माँग की कि हमारे बालक आया है,वो अपनी माता का दूध नहीं पी रहा;कह रहा है कि बकरी का दूध पीना है,इसलिए बढ़िया दूध देने वाली एक बकरी दे दो।बताओ कितने पैसे लोगे?
सिंगारा सिंघ ने कहा- चालीस-पैंतालीस बकरियाँ हैं,कोई भी ले जाओ।जब वो दूध ना दे तो मेरे पास छोड़ जाना और दूसरी ले जाना।मैं कभी भी पैसे नहीं लूँगा।आपने मुझे कभी भी कोई काम नहीं कहा।ये सारी बकरियाँ आप ही की हैं फिर मैं पैसे क्यों लूँ?
ठीक इसी तरह ही हुआ।ढाई साल लगातार बकरी का दूध ही पीते रहे,उसके बाद फिर लंगर छकना शुरू किया।जब लगभग जनवरी में जनम के छैः महीने बाद बाबा जी के माता-पिता जी वारी-वारी गोदी में उठाकर श्री मान संत बाबा जसवंत सिंघ जी रमदास वालों के पास लेकर गए और हाथ जोड़कर विनती की- महाराज जी!ये बेटा अपना नाम तो बताता है पर आप जी कृपा करके इसका नाम रखो जी।जो नाम आप जी रखोगे,हम वही मानेंगे।
तो संतों ने पूछा- आप लोग स्यालकोट से आए हो,वहाँ आपका कौन सा गाँव था?
जी वहाँ हमारा लदेह गाँव था।
वहाँ आपका बेटा सवा दो साल का होकर रविवार बारह बजे चढ़ाई कर गया था(चल बसा था)।ये वही गुरदीप सिंघ हैं।इसलिए इनका नाम गुरदीप सिंघ रखते हैं।
यह बात सुनकर बापू चरण सिंघ जी प्यार में रो पड़े और बार-बार आँसू पोंछ रहे थे।विनती की- महाराज जी!वो तो कोई संत रूह थी।उसकी कहानी लम्बी है।जो आपने हुकुम किया है,अब इसका यही नाम गुरदीप सिंघ ही ठीक है।
यह पिछली बात जो कि बाबा जी के पिता जी बापू चरण सिंघ जी की जुबानी सुनी- बेटा मैं क्या बताऊँ पर फिर भी मैं आपबीती बताने से रह नहीं सकता।
पहले तो जिला स्यालकोट के बारे में सुनो।यह ऐसा पावन पवित्र जिला है जहाँ गुरू साहिब के पांच गुरूद्वारे बहुत मशहूर हैं।इन्हीं में से एक गुरूद्वारा साहिब जो कि बहुत ही पूज्यनीय है- श्री करतारपुर साहिब है।जिस करतार पुर साहिब में मेरे गुरू श्री गुरू नानक साहिब जी ने सबसे ज्यादा जीवन का समय शारीरिक तौर पर गुजारा- सत्रह साल पांच महीने तेरह दिन श्री गुरू नानक देव जी ने करतार पुर साहिब में निवास रखा।खेती-बाड़ी भी की और दूर-दूर नगरों में अपने पावन चरण डालकर धरती पवित्र की।इस जिले के बारे में तुम्हें एक और बात बताऊँ जो हम दीवानों में आम बोला करते हैं-यह याद रहे सन् १९३0 में मैंने (भाई चरण सिंघ चीमा),भाई गुरबख्श सिंघ चीमा,भाई करतार सिंघ चीमा तीनों ने जत्था बनाकर अपने बुजुर्गों दादा-पड़दादाओं की तरह दीवान लगाना शुरु किए।लगातार सत्रह साल दीवान लगा कर अमृत छकाने की सेवा शुरू की।
गुरवाणी का फरमान है-
"संतन की सुणि साची साखी।।
सो बोलहि जो पेखहि आखी।।"
सन् १९४४ में रविवार के दिन सुबह मुर्गे ने पहली बाँग दी। हम लोग पहली बाँग पर ही उठ जाते थे।तीसरी बाँग पर तो सारे ही उठ जाया करते थे।तब हुआ था गाँव लदेह में बड़े बेटे का जनम।संघड़ेवाल वाले संत अतर सिंघ नामधारी से रखवाया था नाम।कभी-कभी उनसे मिलने जाया करते थे,वो भी बहुत प्रेम करते थे।कई बार मैं उनके साथ चिमटा भी बजाया करता था।लो,उन्होंने रखा था नाम गुरदीप सिंघ;कहा कि बहुत अच्छी रूह है,
जिह कुल साधु बैसनौ होइ।।
बरन अबरन रंकु नही इसुरु
बिमल बासु जानीअै जगि सोइ।।१।।रहाउ।।
ब्रहमन बैस सूद अरु खत्री
डोम चंडार मलेछ मन सोइ।।
होइ पुनीत भगवंत भजन ते
आपु तारि तारे कुल दोइ।।१।।
इसे रोज कम से कम एक घड़ी(साढ़े चौबीस मिनिट) वाहिगुरू-वाहिगुरू सुनाया करो।
(फिर २00८ में संत बाबा जगजीत सिंघ जी महाराज भैणी साहिब वालों ने एक सफेद ऊन की माला,एक कमण्डल और एक खड़ाऊँ का जोड़ा भी भिजवाया था।)
जब हुए सवा दो साल के लगभग तो सारे गाँव में घूम आना- वीर जी सति श्री अकाल,भाई जी सति श्री अकाल,बापू जी सति श्री अकाल।कभी-कभी कुंऐं पर दौड़ जाना।बहुत फसल होने लगी।ढाई साल गाय-भैंसों ने भी बहुत दूध दिया।
हरिद्वार से आया था संतों का जत्था;उनके मुखी संत हरिदास जी जो कि सिर पर जटाऐं और पैरों में खड़ाऊँ रखते थे,पंद्रह-बीस साधू साथ थे।हमने उनके जत्थे की बहुत सेवा की।दूध पिलाया,लंगर छकाया,एक रेजा और दो खेस भी दिए।गुड़ और एक रुपया भी दिया।दोपहर तक अपने घर रहे।उधर गलियों में से सति श्री अकाल करते-करते गुरदीप सिंघ भी आ गए।
बाबा जीःसति श्री अकाल,आप कहाँ से आए हो?
बेटा,हम हरिद्वार से आए हैं।
आप हरिद्वार से आए हो,मैं तो हरि के द्वार से आया हूँ।
सबर अंदरि साबरी तनु एवै जालेन्हि।।
होनि नजीकि खुदाइ दै भेतु न किसै देन्हि।।
यह बात सुनकर संत हरिदास जी बहुत हैरान हुए।उन्होंने अच्छी तरह हाथ-पैर और मस्तक देखा और आंखों में आंसू लाते हुए एक गहरी साँस लेकर कहा- भाई चरण सिंघ गुस्सा मत करना,हम कुछ कहना चाहते हैं।इस बच्चे की माता जी को भी आवाज लगाओ।लो भई बेटा सुरजीत कौर,हमारी सत्तर साल की उम्र है,हम तुम्हें कुछ कह रहे हैं,गुस्सा मत करना।
नहीं महाराज जी,महाराज जी गुस्सा किस बात का,आप जो मर्जी कहो।आप तो संतलोक हो,हम तो संतों के सेवक हैं।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं।बच्चे के बारे में कोई बात करनी है।तुम्हारे इस बालक को देखकर मन बहुत खुश हुआ है।इतना सुंदर बालक मैंने आज तक नहीं देखा है,चेहरा भी बहुत भोला सा है।इसका नाम क्या है?
बाबा जी,गुरदीप सिंघ है।
हाँ गुरू का दीपक; एक बार बुझकर फिर जगेगा।
बापू चरण सिंघ जी- हैं? हैं? संत जी ये क्या बात कही,बात खोलकर बताओ।
मैंने तो पहले कहा था कि गुस्सा मत करना।मैंने अपने अनुभव से देखा कि इसके पल्ले कितनी बंदगी है,जो ये लेकर आया है।मैंने दो बातें देखीं तो आंखों से पानी बह चला।पहली बात आज सोमवार है,अब जो रविवार आ रहा है,उस दिन ठीक बारह बजे जब आधा दिन बीत जाएगा;यह चढ़ाई कर जाएगा।आप लोग डोलना मत,रोना नहीं,धीरज रखना।बहुत बंदगी वाली रूह है।आप लोगों के घर फिर यह ही आएगा और बहुत सारा नाम का खजाना सचखंड में ही रखकर कुछ ही अपने साथ लेकर आएगा जो कि कलयुग में आम लोगों के लिए काफी है।रविवार को जाएगा और रविवार को ही आएगा।अगर बारह बजे के बाद शाम तक यह रह गया तो फिर इसकी उम्र ९0 साल की होगी।आप सब लोग इस आने वाले रविवार को घर पर ही रहना;जहाँ तक मुझे ज्ञान है कि यह इस रविवार को ही चला जाएगा।
संतों का जत्था तो चला गया पर बापू चरण सिंघ और माता सुरजीत कौर जी तो गुम के गुम ही हो गए।रविवार सुबह ही सारी बिरादरी में संत हरिदास वाली बात बता दी।आँगन भर गया,सारे ही इकट्ठे हो गए।इस बालक के साथ सभी अपनी-अपनी तरह से खेलने लगे और भाई चरण सिंघ जी को बहुत हौंसला देने लगे कि ये तो बिल्कुल ठीक-ठाक है।गाँव में सूबेदार आया हुआ था। उसकी जेब में घड़ी हुआ करती थी।उसे सारी बात बताई।वो कहने लगा- एक बजे तक मैं तुम्हारे घर रुकूँगा।बालक को कुछ नहीं होगा।ग्यारह बज गए हैं।
ठीक पौने बारह बजे बुखार सा हुआ।बापू चरण सिंघ जी मंजी पर बैठे थे।यह बालक पास जाकर मंजी पर लेट गया।
बापू चरण सिंघ जी- मत्था गरम है,बुखार है।कहीं वही संत हरिदास वाली बात ही न हो जाए?हकीम को जल्दी बुलाओ।
सिर अपनी गोदी में रखकर लगातार देखते जा रहे हैं- गुरदीप सिंघ क्या बात है?
पिता जी कोई बात नहीं।मैंने जाना है,फिर आऊँगा।
कहाँ जाना है?
कुँऐं पर जाना है।
ऐसी बातें करते-करते बारह बज गए।आखिरी वचन किया- मैंने जाना है,फिर आऊँगा।सतिनाम .........वाहिगुरू।
सेकंड में ही शरीर छोड़ दिया।
बापू चरण सिंघ जी- बेटा क्या बात हो गई?क्या बात हो गई?
बोलता नहीं-बोलता नहीं।कब आएगा?कब आएगा?कब आएगा?
रोते-रोते मंजी पर बिस्तरें रखे थे,उन पर जा गिरे।बहुत ही बैराग किया।तीन-चार महीने दीवान लगाने भी कहीं नहीं गए।उधर शाम के वक्त चाचा वसन सिंघ जी ने आ संदेशा दिया- ओ बेटा चरण,तेरा बेटा गुरदीप सिंघ गया तो दूध भी साथ ही ले गया,कुँए पर किसी गाय-भैंस ने आज दूध नहीं दिया।
अब अगले दिन संस्कार के बाद माता जी को मिला- माता जी मैं आऊँगा,आप रोना मत,पिता जी से भी कह दो।कुँए पर जाकर पेड़ों के नीचे बैठकर छुप-छुप कर रोते रहते हैं।
लो भई ये थी आपबीती।अब तुम इनकी माता से पूछ लो।
माता जी की जुबानी-
बेटा,मैं क्या सुनाऊँ?जब वो चला गया था न गुरदीप सिंघ तो न हम मुर्दों में और न हीं हम जिंदों में।यह रोज ही सपने में आकर संदेश देता कि मैं आऊँगा।जब देश का बँटवारा हुआ,पाकिस्तान बना सन् १९४७ में,वहाँ एक लड़की का जन्म हुआ।वह दो महीने की होकर चल बसी।फिर इनकी बड़ी बहन का जनम हुआ- प्रीतम कौर,जो भोलापुर ब्याही है,बाजवा परिवार में।हरदेव सिंघ है दामाद का नाम।फिर ४ साल बाद जनम हुआ लखवीर सिंघ का।जो अब संत वरियाम सिंघ जी रतवाड़ा साहिब वालों के पास रहते हैं।इसके ढाई साल बाद ८ अगस्त सन् १९५४ सुबह ४ बजे रविवार,ये गुरदीप सिंघ आया।
जनम मरण दुहहू महि नाही जन परउपकारी आए।।
जीअ दानु दे भगती लाइनि हरि सिउ लैनि मिलाए।।
रोज संदेशा दिया करता था,साथ में बहुत संगत हुआ करती थी,सत्संग किया करता था स्कूल में,सत्संग करके श्री अनंदु साहिब पढ़कर मेरी गोदी में आ बैठना।
लो भई गुरू के सिक्खा रब तेरा भला करे।एक दिन भी नागा नहीं पड़ा था ,रोज मिलता था।जिस दिन रविवार यह आया,उस रात को १ बजे फिर मिला- बड़ी लम्बी-लम्बी सिर पर जटाऐं सोने के रंग की,पैरों में खड़ाऊँ,हाथ में सोटी(डंडी);मेरे पास आकर बोला- माता जी,आज मैं थोड़ी ही देर में आ रहा हूँ।
यह आखिरी संदेशा था।कई बच्चे जनम के समय अपनी माता को तकलीफ देते हैं,इसने कोई कष्ट नहीं दिया।संत रमदास वाले कहा करते थे कि किसी को दुखी नहीं करेगा।
हूबहू बाबा जी के माता जी,माता सुरजीत कौर जी की जुबानी;आओ अपना ध्यान वहाँ लेकर चलें- कि बाबा जी बकरी का दूध पीकर बहुत खुश होते थे।आठ-आठ,दस-दस दिन आँखें बंद रखनी,खोलनी ही नहीं।अड़ोसी-पड़ोसी सारे देखने आते कि बालक रोता ही नहीं,बैठा ही रहता है।
साथ ही सांझा आंगन था बीबी तार कौर जिसे गांव वाले बीबी तारो कहते थे।जिसका बड़ा बेटा प्रीतम सिंघ,भोला सिंघ,दर्शन सिंघ जो कि आजकल जबलपुर शहर में हैं।इनकी माता जी का नाम तार कौर है जो कि बालक को बहुत ही प्रेम करती थी।कई बार गोदी में उठा के अपने घर ले जाना,अच्छे-अच्छे वस्त्रों में बैठाकर कहना- संत जी यहाँ आँखें बंद करके बैठो और भजन करो,हमारा भी भला हो सके।
आप जी तो शारीरिक उम्र छोटी होने के कारण चुप ही रहते थे।उम्र कुछ सयानी हुई तो बातचीत करनी शुरु की।पिता जी के साथ गुरूद्वारे साहिब जाना,श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी को लेटकर मत्था टेकना,प्रसाद लेकर घर आना,सभी को थोड़ा-थोड़ा बांट देना।
दरवाजे से बाहर साथ में ही मिस्त्री आत्मा सिंघ का घर था।जिसका बड़ा बेटा हरदेव सिंघ,छोटा बेटा सविंदर सिंघ जो बाबा जी की हम उम्र था,उसके साथ बहुत प्रेम रखते थे।बाकी बचा हुआ प्रसाद उनके परिवार को बांट देते थे।
सविंदर सिंघ के साथ नए बने स्कूल में पढ़ना शुरू कर दिया।घणीयां के बांगर गांव का मास्टर गुरबख्श सिंघ बड़े ही प्यार से बच्चों को पढ़ाता था।जांगले गांव से लगभग एक किमी दूर गांव नानकचक है।यहाँ का बेदी वंश का एक लड़का जिसका नाम धरमपाल था- क्लास में इकट्ठे बैठते,इकट्ठे पढ़ते।एक दूसरे के घर से आए हुए खाने को बांटकर आधी छुट्टी में इकट्ठे खाते थे।
मास्टर गुरबख्श सिंघ रिटायर हो गया।तीसरी क्लास में ही हिआली-तंगाली के पास से नया मास्टर आ गया,इसकी उम्र लगभग ३५ साल की थी।सारे बच्चों को लाइन में खड़ा करके एक तरफ से मारना शुरू कर दिया।
धरमपाल नानक चक वाले और बाबा जी ने हाथ जोड़ के सति श्री अकाल करते हुए बड़े प्रेम से कहा- मास्टर जी हमें कभी किसी ने डंडा नहीं मारा।हम बहुत अच्छा पढ़ते हैं।बिना गलती के कभी किसी को नहीं मारना चाहिए।
देखो ओए बच्चों,मेरे बैंत की तरफ,शीशम का डंडा है,घुंघरु बंधे हुए है।हाथ आगे करो और मार खाओ।मैं तो किसी का लिहाज नहीं करता।सभी को बैंत पड़ेंगे।परसों पहली क्लास वालों को मारा है,कल दूसरी वालों को,आज तीसरी वालों को मारना है।कल है रविवार,परसों सोमवार चौथी वालों को,मंगलवार पांचवी वालों को मार पड़ेगी।
बाबा जी बोले- मास्टर जी,नहीं मारना चाहिए।रब का भजन करो,रब से डरो।
ओए मूर्खों,नालायकों तुम मानो रब को,मैं नहीं मानता।
यह बात कह कर सीधे हाथ में डंडा पकड़कर पांच-पांच,छैः-छैः मारे।थोड़ी देर बाद छुट्टी हो गई।मास्टर जी घर चले गए।
धरमपाल कहने लगा- वीर जी,मास्टर को सजा मिलनी चाहिए।
नहीं भाई सजा क्या करनी है?
हाथ लाल हो गए हैं,कोई युक्ति बताओ।
अच्छा,अब ये किसी को नहीं मारेगा।
नानक चक की तरफ मुंह करके यह वचन कहे- सतिगुरू श्री नानक देव जी के साहिबजादे बाबा श्री चंद जी आज मास्टर ने हमें नाजायज मारा है।जिस बांह से मारा है,उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाऐं।सारे शरीर को सजा ना देनी।उल्टे हाथ से रोटी खाने लायक रह जाए,नहीं तो भूखा मर जाएगा।
उधर दो हफ्तों तक मास्टर आया ही नहीं क्योंकि बहुत अहंकारी था।मास्टर के गांव में मेहमान आए तो गांव वालों ने बताया कि यह मास्टर चाहे कितने ही तगड़े बैल हो,दोनों हाथों से पकड़कर चलते हुए कुंए को रोक देता है।चारा कुतरने वाली मशीन को भी चलते हुए,हाथ से पकड़कर रोक देता है।
वो कहने लगे पांच रुपए इनाम देंगे,अगर ये हमारे सामने चलती हुई चारा कुतरने वाली मशीन को रोक दे।
मास्टर ने दौड़कर हाथ डाले क्योंकि पहले का अभ्यस्त था।हाथ मशीन में आकर ऐसे दला गया जैसे गेहूं दली गई हो।१५ दिनों बाद मास्टर जी स्कूल आए तो आधी बांह साथ में थी ही नहीं।जो बाकी बची थी,उसे भी पट्टियां बांधी हुई थीं।
बाबा जी- मास्टर जी सति श्री अकाल।अब बांईं बांह से मारो,ये भी टूट जाएगी।पहले तो अकेली बांह टूटी है अब साथ में लात भी टूट जाएगी।
मास्टर दांई टूटी हुई बांह बांऐं हाथ के साथ लगाकर- भाव हाथ जोड़ के- ले भई गुरदीप सिंघ- धरमपाल मुझे माफी दो।मैं वादा करता हूँ कि मैं अपने बाप का नहीं अगर आज के बाद किसी को भी बांए हाथ से एक भी डंडा मारूं।मुझे माफी दी जाए।मैंने बुजुर्गों से सुना था कि स्कूलों में बच्चों में पता ही नहीं कौन राजा,कौन वजीर,कौन सेठ,कौन कंगाल,कौन गरीब,कौन अमीर होता है।आप तो कोई साधू-संत हो,मेरी बांह तोड़ दी।
हां बड़े होकर ही पता लगता है।बच्चों में क्या पता लगता है।
जब बड़े होते हैं- कोई कुछ बनता है,कोई कुछ बनता है फिर पता लगता है।
अच्छा सरदार जी मेरे पर कृपा का हाथ रखो।अब बांई ना टूट जाए,नहीं तो मुश्किल हो जाएगा।
अच्छा मास्टर जी,अपने गांव के गुरूद्वारे जाना,साथ में प्रसाद ले जाना और श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी से माफी मांगना।
बाबा जी के जीवन में से कुछ ही साखियां संगत के साथ सांझी की हैं.......।रब के भगत तो सचखंड में से ही रब द्वारा भेजे हुए आते हैं।शारीरिक उम्र कम हो या ज्यादा,यह मायने नहीं रखता जैसे कि बचपन में भगत धु्रव जी,भगत प्रहलाद जी आदि भक्तों ने छोटी उम्र में ही बहुत कौतुक किए।
’श्रीमान संत बाबा गुरदीप सिंघ जी के बुजुर्ग-
बाबा जी के बुजुर्ग नौवें पातशाह धंन् धंन् श्री गुरू तेग बहादुर जी महाराज की शरण गए और विनती की- सतगुरू जी आप जी कृपा करके पुत्र की दात बख्शो और कृपा करो कि गुरसिखी घर में रहे;आप जी की बख्शी हुई गुरसिखी का प्रचार कर सकें।
सो श्री गुरू तेग बहादुर जी के समय इस परिवार पर कृपा हुई और जिसने जनम लिया,नाम रखा गया गुरांदित्ता।उस वक्त के बाकी बुजुर्गों का विवरण संगत के सामने दूसरी लिखित में पेश करेंगे।
जो बाबा जी के पड़दादा जी थे उनका नाम था बागा सिंघ।इनके पांच सुपुत्र थे और एक पुत्री थी,बीबी हर कौर ।जो हमारी पड़दादी थीं,उनका नाम था साहिब कौर।जो पांच पुत्र थे उनका नाम उजागर सिंघ,सुलखण सिंघ,मखण सिंघ,मंगल सिंघ और वसण सिंघ।ये जिला स्यालकोट गांव लदेह रहते थे।इन्हें बाबे का गढ़ कहते थे।बाबा जी के दादा जी बापू मखण सिंघ जी थे।वो आगन्तुक साधु-संतों की सेवा करते थे,गांव का जो मुख्य रास्ता था उस पर ही कुंआ था।बापू मखण सिंघ जी,जो अंग्रेजों के बागी हुआ करते थे,उनकी संभाल,देख-रेख करते थे- उनकी जो अंग्रेज सरकार के खिलाफ होते थे कि हमारा देश आजाद होना चाहिए।कुंए के पास ही गन्ना लगाना ताकि किसी को पता न लगे।दादी जी ने खाना बनाकर कुंए पर ले आना और दादा जी ने गन्ने के खेत में जो अंग्रेज सरकार के बागी छिपे होते थे,उन्हें खाना खिलाना।सो ऐसा परोपकारी स्वभाव दादा मखण सिंघ जी का था।
जब ऐसे परिवार में बाबा जी के माता जी का संयोग हुआ,माता सुरजीत कौर जी का बापू चरण सिंघ जी के साथ;जिन्होंने यहीं(बिलासपुर उ.प्र.) में शरीर छोड़ा;उनका भी सारा परिवार संत सेवी था।बाबा जी के नाना जी किस तरह के हुआ करते थे,यह बात उन्होंने खुद बताई- मैं बहुत छोटा था;पाकिस्तान की बात उन्होंने बताई कि किसी गाँव वाले ने मुझे बर्तन दिया और पैसे दिए कि गांव के बाहर लोग बकरे काटते हैं और खाने वाले खाते हैं।कहने लगे- ये लो बेटा पैसे,हमें मांस ला दो।
उन्होंने बताया जब मैं उनके कहने में आकर मांस लेने गया तो मैंने वहां पहुंचकर देखा कि उन्होंने बकरे की गर्दन में रस्सा डाला हुआ था,बांधा हुआ था।पीछे से दो-तीन लोगों ने उसकी लातें पकड़ी हुई थीं।उसे काटने के लिए लेकर जा रहे थे।मैं ये सब देखकर वापस आ गया- खाली बर्तन।वो बताने लगे- बेटा,मैंने सारी जिंदगी मांस,शराब,अंडों को हाथ नहीं लगाया,वो दृश्य मेरी आंखों के सामने से हटता ही नहीं था।सो ऐसे थे बाबा जी के नाना जी ।
बाबा जी के पिता जी कीर्तन किया करते थे,तीन लोगों का जत्था था।जब ये पाकिस्तान में कीर्तन किया करते थे तो अंग्रेजों ने पाबंदी लगा दी थी कीर्तन पर कि ये गलत बोलते हैं सरकार के खिलाफ सो इन्हें कीर्तन न करने दिया जाए।अंग्रेज सरकार की पाबंदियों के बावजूद जिस गांव में दीवान होते थे तो गांव के बाहर रास्तों पर कुछ सिंघ निगरानी रखते थे कि कहीं पुलिस न आ जाए।अंग्रेज सरकार का सख्त हुकुम था कि कहीं पांच लोगों से ज्यादा इकट्ठे न हों।सो ऐसे मुश्किल हालातों में भी बाबा जी के पिता जी बापू चरण सिंघ जी ने कीर्तन और अमृत संचार जारी रखा।
जब इधर आए बंटवारे के बाद हिंदुस्तान में तब बहिन पूरो(प्यार वाला नाम)जीवित थीं।रास्ते में लाशों के ऊपर से निकलकर आना पड़ता था।पानी के कुंए और छप्पर भी लाशों से भरे हुए थे।चारों तरफ खून ही खून नजर आता था।अगर किसी को पानी पीना हो तो वो लाशें हटाकर ही पानी पी सकता था।वहाँ से कुछ भी साथ नहीं ला पाए थे,सारे पैदल चलकर ही भारत आ रहे थे।जब अमृतसर पहुंचे तो माता जी को एक तकिया मिला;किसी का गिर गया होगा;वो माता जी ने उठा लिया कि चलो पूरो के नीचे रख दिया करुँगी।वो तकिया जब उठा कर देखा कि ये तो सोने से भरा हुआ है- गहने थे,किसी ने इंतजाम किया होगा रकमें साथ ले जाने के लिए,पर वो लोग पता नहीं भाग गए या मारे गए,जिनका वो तकिया था।हमारे माता जी ने उसे दूर फेंक दिया।माता जी कहने लगे कि हम तो अपना सब कुछ पाकिस्तान में छोड़ आए हैं।ये बेगाना सोना,बेगाना धन हमने नहीं लेना।सो ऐसा स्वभाव बाबा जी की माता जी का था।
बहिन पूरो चल बसी।इधर आ गए,अभी जमीन नहीं मिली थी।बापू चरण सिंघ जी ने पंजाब आकर मेहनत और ईमानदारी की कमाई शुरू की,उस वक्त आप जी की उम्र २९ वर्ष की थी।
एक दिन काम पर जा रहे थे तो एक नौजवान बीबी,सेठानी थी उसने आवाज लगायी।कहने लगी- सरदार जी बात सुनो।
बापू चरण सिंघ जी सहज स्वभाव चले गए।वो कहने लगी- ये सेठ का घर है।कपड़े की दुकान है;गहना,पैसा किसी बात की कोई कमी नहीं।सेठ जी घर से नौ बजे चले जाते हैं और रात्रि दस बजे आते हैं।आप अपने आप को इस घर का मालिक ही समझो।
सो सबकुछ ही उसने कह दिया बापू चरण सिंघ जी से।यहाँ आकर बड़े-बड़े डोल जाते हैं जबकि सबकुछ पाकिस्तान में ही छोड़ आए थे,अभी जमीनें भी नहीं मिली थीं।जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो बड़े-बड़े जोगी जो थे वो भी डोल गए।बापू चरण सिंघ जी के मन में गुरवाणी का निरंतर जाप चलता रहता था।
धंन धंन रामदास गुरु जिनि सिरिआ तिनै सवारिआ
बापू चरण सिंघ जी ने हाथ जोड कर कहा- बहिन जी,मैं श्री गुरू रामदास जी का सिख हूँ आप मेरी बहिन समान हो।
सो ऐसा सब्र सिदक और मर्यादा से भरपूर ऊँचा और सच्चा जीवन था बाबा जी के पिता जी बापू चरण सिंघ जी।
अब जांगले आ गए।सन्१९४८ में बाबा जी की बड़ी बहिन जी,बहिन प्रीतम कौर,का जन्म हुआ।उसके बाद डॉक्टरों ने,वैद्यों ने जवाब दे दिया कि अब आपके घर औलाद नहीं हो सकती।
बाबा जी के पिता जी हर अमावस वाले दिन श्री हरि मंदिर साहिब अमृतसर जाया करते।उनका एक नियम और भी था कि अमावस वाले दिन घर के सारे कामकाज संकोच देते थे।माता जी,माता सुरजीत कौर जी ब्रह्मज्ञानी बाबा बुड्ढा साहिब जी के समाधि स्थान रमदास जाया करते थे।उस वक्त मौजूदा संत जसवंत सिंघ जी थे।वहाँ जाकर संतान निमित्त अरदास-विनती करते थे।एक दिन संत जसवंत सिंघ जी ने वचन किया कि बेटा सारा दिन नल चलाकर संगत की प्यास बुझाया करो।संतों का वचन कमाते हुए माता जी सारे दिन सेवा में लगे रहते।गुरवाणी का फरमान है
धचारि पदारथ जे को मागै।।साध जना की सेवा लागै।।
एक दिन माता जी ने स्वयं बताया कि जब रमदास साहिब जाकर सेवा करने के बाद संगत में बैठती तो एक सफेद दस्तार सफेद वस्त्र वाले कोई संत वचन करते कि मैं आऊँगा।ऐसे ही समय गुजरता रहा।
यू.पी.के इलाके में संत ईशर सिंघ जी महाराज राड़ा साहिब वाले पहली बार सन् १९५८ में आए।उस वक्त मुरादाबाद आप जी ने दीवान लगाए।मुरादाबाद से ही संत बाबा वरियाम सिंघ जी की विनती परवान करके,उनके फार्म अनवरीआ तहसील बिलासपुर आए।उस वक्त राड़ा साहिब वाले महापुरूषों ने बिलासपुर और तराइ के इलाके के लिए बहुत सारे वचन दिए।आप जी को,वापिस आते वक्त,संत वरियाम सिंघ जी ने विनती की कि महाराज जी यहीं ऊँची जगह पर हमारी दो एकड़ जमीन है जो आप जी सेवा में परवान करो और आप जी अपना स्थान बनाओ ताकि इस इलाके का भला हो जाए।
राड़ा साहिब वाले महापुरूषों ने जमीन की तरफ देखते हुए फरमाया "यह जगह और भी ऊँची हो जाएगी और इस इलाके के भले का समय भी आ जाएगा।"
यह वचन आप जी ने सहज स्वभाव ही कहे जो आज पूरे हो रहें हैं।संत बाबा गुरदीप सिंघ जी गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआनंगल की स्थापना करके,आलीशान गुरूद्वारा साहिब तैयार करवा के,दिन-रात धर्म प्रचार करके,लाखों प्राणियों को अमृत छका के और श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के चरणों के साथ जोड़ के राड़ा साहिब वाले महापुरूषों के कहे हुए वचन पूरे किए।
सन् १९६८ में संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने राड़ा साहिब वाले महापुरूषों को विनती की कि महाराज वचन करो कि हमारी यू.पी. वाली जमीन बिक जाए क्योंकि इस इलाके में सिक्खी का नामोनिशान नहीं।यहाँ प्रचारक,ग्रंथी शराब पी के पाठ करते हैं और पाठ करवाने वाले भी माँस,शराब डटकर पीते हैं,पिलाते हैं।पशुओं की चोरी और मारकाट को भी ये लोग बुरा नहीं समझते।ऐसा लगने लगा है कि जैसे मैं अकेला ही हूँ।
राड़ा साहिब वाले बड़े महाराज जी ने बहुत ध्यान से विनती सुनी और नेत्र बंद कर लिए।कुछ समय बाद नेत्र खोले और कहा ‘‘आप लोग अभी जमीन न बेचो।संगत तो तुम से यहाँ संभाली नहीं जाएगी,हम भी किसी समय तुम्हारे साथ संगतों के दर्शन करेंगे।’’
कुछ समय बाद संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने यू.पी. में सत्संग शुरू कर दिए।एक दीवान गुरूद्वारा साहिब गोल मार्केट रुद्रपुर था।उस दीवान में बाबा गुरदीप सिंघ जी पहुँचे तो देखा कि चिमटा एक ही बज रहा है,दूसरा पास ही पड़ा था।बाबा जी वो चिमटा दीवान में बजाने लगे।दीवान की समाप्ति के बाद महाराज जी ने पूछा कि चिमटा बजाना कहाँ से सीखा है।बाबा जी ने बताया कि हमारे पिता जी पाकिस्तान में दीवान लगाते थे,उन्हीं से सीखा है।उस वक्त महाराज जी ने वचन किया कि आप हमारे साथ अब जत्थे में सेवा करो।उस दिन से महाराज जी का वचन मानकर माइक-स्पीकर और चिमटे की सेवा बाबा गुरदीप सिंघ जी करने लगे।उस वक्त इलाके के और भी सिख साथ थे।श्रीमान संत बाबा वरियाम सिंघ जी महाराज ने घर-घर जाकर सत्संग दीवान लगाने शुरू कर दिए।आप जी दीवानों का सारा खर्चा स्वयं ही वहन करते थे।
उस समय भाई भान सिंघ लोहे वालों के घर बिलासपुर साज और स्पीकर रख देते।धीरे-धीरे इस इलाके में सत्संग की लहर शुरू हो गई।पंद्रह-पंद्रह,बीस-बीस किमी से संगत दीवान में हाजिरी भरने लग पड़ी।
गांव धनोरा फार्म तहसील बिलासपुर में सत्संग दीवान में बाबा गुरदीप सिंघ जी अपने बड़े भाई बाबा लखवीर सिंघ जी को अपने साथ लाए।आज गांव गोविंदपुरा का भाई अमर सिंघ जो कि दीवान के बाद अरदास की सेवा करता था किसी कारण वश नहीं आ सका।जब महापुरूषों का दीवान हो चुका तो बाबा जी ने बड़े भाई लखवीर सिंघ को इशारा किया कि अरदास करो और हुकुमनामा लो।भाई लखवीर सिंघ जी ने कहा कि आज मैं पहली बार आया हूँ,किसी से कोई जान-पहिचान भी नहीं है- ऐसा न हो कि कोई टोके।
बाबा गुरदीप सिंघ जी ने कहा- कोई नहीं टोकेगा।सभी जान-पहिचान वाले हैं।महापुरूष तो मेरे पिता जी हैं,हम लोग आपस में प्रेमपूर्वक सारी बातें कर लेते हैं।इसलिए आप अरदास करो।भोग के बाद हुकुमनामा श्रवण करने के बाद बाबा गुरदीप सिंघ जी को संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने अपने पास बुलाया और पूछा- "ये तुम्हारे साथ कौन है?"
बाबा गुरदीप सिंघ जी ने कहा- यह मेरा बड़ा भाई लखवीर सिंघ है।
उस दिन संत महाराज जी ने इन दोनों भाइयों को कहा कि हर दीवान में दोनों भाई आया करो।उस दिन से फिर दोनों भाई हर दीवान में जाते रहे और सेवा करते रहे।
सन् १९७३ में संत वरियाम सिंघ की विनती को परवान करके २६ जनवरी से लेकर ११ मार्च तक ४५ दिन बड़े महाराज राड़ा साहिब वालों ने यू.पी. और तराई के इलाकों में रुहानी उपदेश की अमृत वर्षा की।इनमें से १४ सत्संग दीवान बिलासपुर के नजदीक गन्ना सोसायटी के ग्राउंड में सजे।इनमें संगत का भारी जमाव होता रहा।आखिरी दीवान वाले दिन राड़ा साहिब वाले महापुरूषों के जत्थे द्वारा अमृत संचार किया गया।जिसमें ६५0 प्राणी अमृत छक कर गुरू वाले बने।इन दीवानों के समय राड़ा साहिब वाले महापुरूषों की रिहाइश का प्रबंध संत वरियाम सिंघ जी ने रुद्रपुर शहर के नजदीक बलवंत फार्म में किया।इस दौरान संत महाराज जी के दर्शन करने और वचन करने वाली संगतों की भीड़ लगी रहती,जिन्हें बारी-बारी वचन करने का समय दिया जाता।कोई दूध के लिए,कोई पुत्र के लिए,कोई शारीरिक दुख दूर करने के लिए महापुरूषों से आशीष लेते और कोई-कोई नाम-सिमरन करने के लिए युक्ति पूछता- हजारों प्रेमियों ने लाभ प्राप्त किया।
बलवंत फार्म पर ही संत वरियाम सिंघ जी अपने साथ बाबा गुरदीप सिंघ जी और बाबा लखवीर सिंघ जी को लेकर बड़े महाराज जी के पास आए।उन्होंने नमस्कार की,चरण-धूलि प्राप्त हुई।संत वरियाम सिंघ जी ने बताया- महाराज जी!ये दोनों भाई मेरे जत्थे के सिंघ हैं,इन पर कृपा करो जी।
राड़ा साहिब वाले महापुरूषों ने प्रसन्न होकर बहुत सारे वर दिए।वचन हुआ- तुम दोनों भाई सत्संग में आते ही रहा करो।तुम से गुरू महाराज जी ने बहुत सेवा लेनी है।ये हमारा ही सत्संग है जो वरियाम सिंघ जी करते हैं।तुम हमारे बच्चे हो,तगड़े होकर सेवा किया करो।गुरू महाराज जी तुम्हारे पर बहुत कृपा करेंगे।
इस तरह और भी बहुत सारे वचन प्रसन्न होकर किए।उस समय संत वरियाम सिंघ जी ने विशारत नगर पंचमी का दीवान लगाना आरंभ कर दिया था।हर दीवान में संत वरियाम सिंघ जी अपने कीर्तन के समय से पहले इन दोनों भाइयों को बारी-बारी कीर्तन करवाते थे।संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने गांव नवाब नगर भाई नसीब सिंघ के घर दीवान में वचन कहे थे "साधसंगत जी यह जो सत्संग रुपी पौधा बड़े महाराज राड़ा साहिब वालों की और गुरू महाराज जी की कृपा से तहसील बिलासपुर में लग चुका है,यह अब कलयुग की मार से ऊपर चला गया है।इस विषय में हमें कोई फिक्र नहीं करना चाहिए।यह पौधा जिसने लगाया है,इस सत्संग रूपी पौधा की देख-रेख खुद आप करेंगे।अभी तो रामपुर जिले में ही सत्संग होते रहे हैं,यह सत्संग रूपी पौधा इतना बढ़ेगा-फलेगा,फैलेगा कि आप लोग सोच भी नहीं सकते।"
फिर आपने वचन किया- हमने जमीन बेचकर चंडीगढ़ चले जाना है और वहीं दीवान आरंभ करने हैं।इस इलाके में सत्संग दीवानों की सेवा यह दोनों भाई,भाई गुरदीप सिंघ और भाई लखवीर सिंघ किया करेंगे।
सन् १९७८ अक्टूबर की ३१ तारीख को आप जी अनवरीआ फार्म की जमीन बेचकर चंडीगढ़ चले गए।पहले चंडीगढ़ और फिर जिला रोपड़ के इलाके में आप जी ने सत्संग दीवानों द्वारा धर्म प्रचार किया।
उस वक्त बाबा जी और सारा परिवार घर पर ही रहते थे और घर से ही सत्संग करने जाते थे।घर पर आई हुई सिख संगतों की सेवा करते थे।सन् १९८४ के समय किसी ईर्ष्यालु ने यू.पी. और पंजाब पुलिस को शिकायत कर दी कि ये खाड़कू सिंघो को घर पर रखते हैं और सेवा करते हैं।पुलिस घर आकर बाबा जी को और बापू चरण सिंघ जी को गिरफ्तार करके रामपुर ले गई।वहाँ जेल में रखना था पर थानेदार कहने लगा कि मैं तुम्हें रामपुर जेल नहीं सीधा पंजाब लेकर जाऊँगा।क्योंकि जिनकी लिखा-पढ़ी थाने में नहीं होती थी पुलिस उन्हें भगोड़ा या बागी करार दे के गोली मार देती थी।यह सारी बात पलविंदर सिंघ जो कि कांग्रेस का नेता था,उसे पता लगी।वो बाबा जी का श्रद्धालु था।उसने थानेदार को कहा कि बिना लिखा-पढ़ी के तू इन्हें कहीं नहीं ले जा सकता।
फिर रामपुर जेल से जब कोर्ट में पेशी के लिए ले जाने लगे तो हथकड़ी पहनाने लगे।तीन बार हथकड़ी पहनाई पर वो अपने आप खुल जाती थी।फिर बाबा जी ने वचन किया- अब लगा दो हथकड़ी,लग जाएगी।उसके बाद कोर्ट के फैसले के अनुसार कुछ दिन रामपुर जेल में रखा गया।फिर जब पंजाब पुलिस बाबा जी और बापू जी को पंजाब लेकर चली तो बाबा जी ने पलविंदर सिंघ को कहा- तुमने हमारी मदद की है,हम तेरी परलोक में मदद करेंगे।
जब इधर पलविंदर सिंघ ने शरीर छोड़ा तो उधर बाबा जी कुछ घंटे अपने कमरे में ही समाधि लगा कर बैठे रहे।जब बाहर आए तो कहा कि भाई पलविंदर सिंघ चढ़ाई कर गया है,उसका भला कर दिया है क्योंकि उसने हमारी मदद की थी।
जब बाबा जी को पुलिस पंजाब लेकर आई तो पट्टी तरन-तारन साहिब के नजदीक पेश किया गया।वहाँ का जो थानेदार था वो बहुत ही जुल्मी और अत्याचारी था।उसने छै सिंघ पहले ही नाजायज मार दिए थे।
बाबा जी के बड़े भाई बाबा लखवीर सिंघ जी मिलने आए तो बाबा जी ने बताया कि बड़े महाराज श्री राड़ा साहिब वालों ने संदेशा दिया है कि जो डी.एस.पी. तरन-तारन साहिब ड्यूटी पर है वो बिलासपुर बरसैना का रहने वाला है,आप लोग उससे मिलो,वो आपकी मदद करेगा।
फिर बाबा लखवीर सिंघ जी डी.एस.पी. से मिले और सारी बात बताई।उसने तुरंत ही वायरलैस किया और कहा कि तुम लोग मेरे ही परिवार वालों को पकड़ लाए हो,खबरदार किसी को हाथ भी लगाया।
थाने वालों ने कहा- कोई बात नहीं,हमारा डी.एस.पी. आ जाए जो इन्हें यू.पी. से लेकर आया था फिर सारी कसर निकाल लेंगे।
फिर वो दुष्ट डी.एस.पी. आया और सबको रिमांड पर लिया।फिर जब बारी आई बाबा जी की;जो कि हर वक्त की तरह गुरवाणी पढ़ रहे थे।
गुरवाणी का फरमान है-
ताती वाउ न लगई पारब्रहम सरणाई।।
चउगिरद हमारै रामकार दुखु लगै न भाई।।
जिस वक्त बाबा जी को वो रिमांड पर लेने लगा तो उसके घर से संदेशा आ गया,मजबूरन ही डी.एस.पी. को घर जाना पड़ा।फिर बहुत समय बाद जब बाबा जी कोटा(राजस्थान) सत्संग करने गए तो इसी डी.एस.पी. की लड़की बाबा जी से मिली और बहुत रोई।उसने बताया- बाबा जी हमारे परिवार में बहुत मौतें हुईं,बहुत बुरा हाल हो गया है आप जी कृपा करके हमें माफ कर दो।
उधर जब बाबा जी और बापू चरण सिंघ जी कोर्ट में पेश होना था,तारीख एक नवंबर पड़ी।इसके ठीक एक दिन पहले ३१ अक्टूबर को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो चुकी थी।सभी का कहना था कि आज एक नवंबर को कोर्ट बंद हैं तो बाबा जी ने कहा कि तुम कोर्ट लेकर तो चलो।जो जेलर था वो पिछले कुछ समय से बाबा जी की दैनिक चर्या देखकर काफी प्रभावित था।इसलिए वो बाबा जी का कहा मानकर जब कोर्ट लेकर गया तो जज हरनाम दास जो कि बहुत ही ईमानदार था,कोर्ट के बाहर ही हाथ में बाबा जी और बापू चरणसिंघ जी की रिहाई का कागज लेकर इंतजार में था।उसने फैसला सुनाया कि गुरदीप सिंघ और उनके पिता चरण सिंघ को बरी किया जाता है।
फिर उसी दिन (१ नवंबर) की शाम को बाबा जी बाकी लोगों के साथ श्री हरिमंदिर साहिब गुरू महाराज जी का शुक्राना करने गए।चूंकि घर से आए हुए काफी दिन हो गए थे तो बाकी लोग अगले दिन घर जाने को कहने लगे।बाबा जी ने कहा कि हम सब लोग श्री राड़ा साहिब नौ दिन सेवा करके फिर घर जाऐंगे।पर बाकी लोग जिद कर रहे थे तो २ नवंबर को वहाँ से चल पड़े।जो उस समय के हालात थे,इन सब लोगों को सरहिंद में कुछ दिन रुकना पड़ा।इसी तरह रुकते-रुकाते नौ दिन बाद ही अपने घर पहुंच पाए।
सन् १९८६ में आप जी ने गुरूद्वारा ईशर प्रकाश रतवाड़ा साहिब की नींव रखी।इधर बाबा लखवीर सिंघ जी की सर्विस रुद्र बिलास चीनी मिल में लग गई,सत्संग दीवानों का प्रवाह बाबा गुरदीप सिंघ जी ने जारी रखा।बाबा गुरदीप सिंघ जी ने सारी यू.पी. एवं दूसरे प्रांतों में भी सत्संग दीवान लगाए और अमृत प्रचार किया।सन् १९८६ में रतवाड़ा साहिब की सेवा आरंभ करने से पहले संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने एक प्रेम भरी पत्रिका लिखकर बाबा लखवीर सिंघ जी को अपने पास बुला लिया।यह पत्रिका पढ़कर नौकरी से त्याग पत्र देकर संत महाराज जी के पास चंडीगढ़ चले गए और रतवाड़ा साहिब में सेवा आरंभ कर दी।
सन् १९८७ में सत्संग का जो प्रवाह चलाया श्रीमान संत बाबा गुरदीप सिंघ जी ने उसमें सुबह,दोपहर,और रात भाव कि एक दिन में तीन-तीन सत्संग किया करने और लाखों ही प्राणियों को अमृत छका के श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के चरणों से जोड़ा।सारा दिन और रात सत्संग करते,सफर करते और संगतों से मिलते।इसी तरह सारा समय सिखी प्रचार में गुजरता था।
एक दिन जब जिला बंडा के नजदीक गहलोइआ गांव में दोपहर का तीसरा सत्संग कर रहे थे तो बोलते -बोलते श्री अनंद साहिब पढ़ते वक्त आवाज बंद हो गई।हाथ से इशारा किया संगत को कि आप लोग श्री अनंद साहिब और गुरू उस्तोत्र (स्तुति) पढ़ लो।अरदास होने के बाद साथ वालों को कागज पर लिखकर बताया कि आज पंद्रह दिन हो गए हैं जो कि आराम करके नहीं देखा।जीप में चलते-चलते ही थोड़ा-बहुत आराम करना,दीवान लगाने और अमृत छकाने।आप जी कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे।फिर आप जी इलाज के लिए चंडीगढ़ रतवाड़ा साहिब वाले महाराज जी के पास गए।उन्होंने पी.जी.आई हॉस्पिटल में इलाज शुरु करवा दिया।तीन महीने इलाज चलता रहा पर आवाज वापस नहीं आई।तीन महीने बाबा जी रतवाड़ा साहिब सेवा करते रहे।
उसी समय के दौरान रतवाड़ा साहिब की जमीन में रूड़ी (देसी खाद) डलना थी,उस वक्त बाबा जी ने जो सेवा निभायी कि सब हैरान रह गए।आप जी ढाई मिनिट में रूड़ी की ट्राली भर देते थे।तीस दिन में होने वाली सेवा बाबा जी ने दो दिन में पूरी कर दी।
सेवा करते रहे पर बोल नहीं पाते थे।डॉक्टर ने हर तरीके से इलाज किया पर फर्क नहीं पड़ा।आप जी रात को गुरवाणी पढ़ते रहते।जब रात का एक बज रहा था तो श्री हुजूर संत बाबा ईशर सिंघ महाराज जी राड़ा साहिब वालों ने दर्शन दिए; एक कैप्सूल दिया और वचन किया कि इसे खा लो।जब बाबा जी उठे तो मुंह में उस कैप्सूल का स्वाद दूध की क्रीम जैसा महसूस हुआ।उसके बाद से ही बाबा जी बोलने लग पड़े।
यह समझ से परे की बातें हैं।
हरन भरन जा का नेत्र फोरु।।तिसका मंत्रु न जानै होरु।।
इधर यू.पी. में सरदार बलवंत सिंघ सवालापुर वालों ने बाबा गुरदीप सिंघ जी में श्रद्धा भावना रखते हुए बड़े प्रेम से अपनी पांच एकड़ जमीन बाबा गुरदीप सिंघ जी को दान कर दी।बाबा गुरदीप सिंघ जी ने सवालापुर में इस पांच एकड़ जमीन के साथ लगी हुई पांच एकड़ जमीन और खरीद के दस एकड़ जमीन इकट्ठी कर दी।
इधर जहाँ आजकल गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल है,सरदार जगीर सिंघ के तीनों बेटों सरदार करम सिंघ,सरदार जोगिंदर सिंघ और सरदार संतोख सिंघ ने मिलकर पांच एकड़ जमीन बाबा गुरदीप सिंघ जी को दान कर दी।बाद में गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल वाली बाकी की सारी जमीन संगत के सहयोग से मोल खरीदी है।
कुछ समय बाद भाई गुरपाल सिंघ ने बाबा गुरदीप सिंघ जी को विनती की कि सवालापुर वाली दस एकड़ जमीन मुझे दे दो।बाबा गुरदीप सिंघ जी ने सवालापुर वाली दस एकड़ जमीन भाई गुरपाल सिंघ के सुपुर्द कर दी।
बाबा गुरदीप सिंघ जी ने खूबीआ नंगल में सन् १९८८ में गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल की नींव पांच प्यारों में शामिल होकर रखी।इससे पहले बाबा जी की धर्म-पत्नि;जो कि संगत के माताजी हैं;माता बलविंदर कौर जी पांच सिंघों को साथ लेकर रतवाड़ा साहिब वाले महापुरूषों के पास पहुंचे और विनती की- महाराज जी!खूबीयानंगल गुरूद्वारा साहिब की नींव रखना है सो आप कृपा करो और ईंट बख्शो।माता जी की विनती परवान करके महापुरूषों ने ईंट को अपने कर-कमलों में लेकर खूबीआ नंगल गुरूद्वारे के प्रथाय बहुत सारी आशीषें दीं।फिर माता जी उस पावन ईंट को सफेद वस्त्रों में लपेटकर लेकर आए और वह ईंट बाबा जी को लाकर दी।
सन् २00१ में गुरूद्वारा साहिब की नई इमारत का नींव पत्थर सचखंड वासी श्रीमान संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने पांच प्यारों में शामिल होकर अपने पवित्र कर-कमलों द्वारा रखा- जो कि धर्म प्रचार का बहुत बड़ा केंद्र बन चुका है।यहाँ हर अंग्रेजी महीने की १ तारीख को भारी दीवान सजता है और अमृत संचार होता है।
इस गुरूद्वारा साहिब में अटूट गुरू का लंगर,बच्चों को गुरवाणी एवं कीर्तन की शिक्षा और हर वक्त श्री अखंड पाठ साहिब का प्रवाह चल रहा है।
इस स्थान पर गुरू महाराज जी के गुरू-पर्व समय-समय पर मनाए जाते हैं।
बाबा गुरदीप सिंघ जी ने गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल से धर्म प्रचार करते हुए यू.पी. के अलावा उत्तराखंड,बिहार,दिल्ली,राजस्थान,उड़ीसा ,हरियाणा,पंजाब,महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों में सत्संग दीवान करके,अमृत छका के लाखों प्राणियों को श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के चरणों से जोड़ा।सत्कार जोग बाबा जी ने विदेशों में भी मलेशिया,सिंगापुर,कनाडा,इंग्लैंड और अमेरिका में दीवान लगाए और गुरू महाराज जी की कृपा से विदेशों में भी हजारों सिख संगतों को गुरू चरणों से जोड़ा।
सन् १९९३ से बाबा गुरदीप सिंघ जी ने अपने जत्थे समेत मध्यप्रदेश में जिला शिवपुरी के गांव सरवाया से दीवान आरंभ करके दूर-दूर तक सत्संग और अमृत संचार किया।
इन इलाकों में हर साल साठ दीवान रखते रहे।जिला ग्वालियर,जिला शिवपुरी,जिला अशोकनगर,जिला गुना,जिला विदिशा,जिला भोपाल,जिला भिंड,राजस्थान के जिला बारां,जिला कोटा,जिला बूंदी एवं छत्तीसगढ़ प्रांत के जिला रायपुर समेत इन बारह जिलों में हजारों प्राणी अमृत छक कर गुरू वाले बन चुके हैं।जिसका नतीजा यह हुआ जिला अशोकनगर शहर से विदिशा रोड़ पर चार किमी गुरूद्वारा ईशर प्रकाश वरियामसर है।जिसका नींव पत्थर १६ फरवरी २00४ को पांच प्यारों में शामिल होकर बाबा गुरदीप सिंघ जी ने अपने कर कमलों द्वारा रखा।इस गुरूद्वारा साहिब की १४ एकड़ जमीन है,यहाँ अटूट गुरू का लंगर,बच्चों को कथा-कीर्तन,गुरवाणी की शिक्षा और हर साल गुरमत समागम करके अमृत संचार किया जाता है।
समूह संगत को विनती है कि सचखंड श्री हुजूर साहिब की यात्रा पर जाते समय गुना शहर से ४५ किमी पर गुरूद्वारा ईशर प्रकाश वरियामसर जिला अशोकनगर, शहर से विदिशा रोड़ पर ४ किमी पर स्थित है।आप जी इस स्थान पर जरूर पहुंचो।संगत आप जी की सेवा करके अपना धन्य भाग्य(सौभाग्य)समझेगी।
बाबा जी के जीवन के प्रेरक प्रसंग
’एक बार बाबा जी लकड़ी काटने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॅाली लेकर रामनगर के इलाके में गए;शारीरिक उम्र लगभग १८ साल की रही होगी।जहाँ लकड़ी काट रहे थे,वहीं से थोड़ी ही दूरी पर एक घर था।वहाँ पर बहुत ही बंदगी वाले एक संत आए हुए थे।उन्होंने जब बाबा जी को देखा तो संगत को बताया कि अभी इन्हें कोई नहीं जानता,कोई समय आएगा ये सारी दुनिया में सिखी प्रचार करेंगे,दुनिया इन्हें जानेंगी।इनकी पिछले जनमों की बेअंत बंदगी है,ये दुनिया का बहुत सुधार करेंगे।परमेश्वर जी जगत कल्याण के लिए समय-समय पर अपने प्यारों को इस संसार में भेजते हैं।ये भी जगत कल्याण के लिए ही आए हैं,परमेश्वर जी द्वारा भेजे हुए।
’एक समय बाबा जी हरियाणा में उरलाणा अड्डे दीवान लगाने गए,वहाँ एक नौजवान मिलने आया।उसने गुरवाणी बहुत कंठस्थ की हुई थी।इस बात का उस भाई को अहंकार हो गया था।कहने लगा- बाबा जी मेरे जितनी गुरवाणी किसी को याद नहीं।
बाबा जी ने वचन किया- बहुत अच्छी बात है,तुम पांच दिन सत्संग सुनो।
बाबा जी दीवानों में गुरवाणी पूरे सबद अर्थों समेत सुनाते रहे।पांचवें और आखिरी दीवान में वही नौजवान माइक लेकर बोला- साधसंगत जी कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।मेरा भी अहंकार टूट गया है।गुरू घर में ऐसे ब्रह्मज्ञानी महापुरूष हुए हैं जिन्हें कि संपूर्ण श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी कंठस्थ थे।
’सन् १९७७ में एक दिन अनवरीआ फार्म में पाखर के नीचे रतवाड़ा साहिब वाले महाराज जी और संत बाबा गुरदीप सिंघ जी बैठे थे।संत महाराज जी ने वचन किया कि कितनी गुरवाणी कंठस्थ है?
बाबा जी ने विनती की- महाराज जी!कृपा है गुरू महाराज जी की।
उस वक्त घर पर सहज पाठ रखा हुआ था।रतवाड़ा साहिब वाले महाराज जी ने वचन किया- चलो वाणी सुनाओ।
महाराज जी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में से एक पंक्ति पढ़ते दूसरी पंक्ति बाबा गुरदीप सिंघ जी बिना देखे सुना देते।बीस-बीस अंग जुबानी सुना देते थे भाव यह कि श्रीमान संत बाबा गुरदीप जी पर अकाल पुरख वाहिगुरू जी की अपार कृपा थी।
गुरूद्वारा साहिब ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल बिलासपुर यू.पी.
श्रीमान संत बाबा गुरदीप सिंघ जी ने खूबीआ नंगल बिलासपुर जिला-रामपुर यू.पी. में सन् १९८८ गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल की नींव पांच प्यारों में शामिल होकर रखी और सन् २00१ में गुरूद्वारा साहिब की नयी इमारत का नींव पत्थर सचखंड वासी श्रीमान् संत बाबा वरियाम सिंघ जी ने पांच प्यारों में शामिल होकर अपने पवित्र कर-कमलों द्वारा रखा।जो कि आज धर्म प्रचार का बहुत बड़ा केंद्र बन चुका है।यहाँ हर अंग्रेजी महीने की १ तारीख को भारी दीवान सजता है, और अमृत संचार होता है।
इस गुरूद्वारा साहिब में अटूट गुरू का लंगर,बच्चों को गुरवाणी एवं कीर्तन की शिक्षा और हर वक्त श्री अखंड पाठ साहिब का प्रवाह चल रहा है।
इधर जहाँ आजकल गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल है,सरदार जगीर सिंघ के तीनों बेटों सरदार करम सिंघ,सरदार जोगिंदर सिंघ और सरदार संतोख सिंघ ने मिलकर पांच एकड़ जमीन बाबा गुरदीप सिंघ जी को दान कर दी।बाद में गुरूद्वारा ईशर प्रकाश खूबीआ नंगल वाली बाकी की सारी जमीन संगत के सहयोग से मोल खरीदी है।
इस गुरूद्वारा साहिब में अतिसंुदर बने दरबार साहिब में हर वक्त पुरातन मर्यादा अनुसार श्री अख्ंाड पाठ साहिब और साथ ही श्री जपु जी साहिब की वाणी का पाठ निरंतर चलता रहता है।यहाँ गुरू का लंगर,बच्चों को कथा-कीर्तन-गुरवाणी की शिक्षा,सेवा-सिमरन का अटूट प्रवाह निरंतर जारी है।संगत के रुकने व रहने के लिए रिहायशी कमरे मौजूद हैं।यहाँ सिख संगत भावना सहित यथाशक्त रसद भेंट करके सेवा करती हैं।एक बार एक बुजुर्ग माता माचिस की डिबिया में आटा डालकर लाई।बाबा जी ने देखकर पूछा कि माता जी ये क्या है?माता रोने लग पड़ी और बताया- बाबा जी!दीवान में आप जी के मुख से साखी सुनी थी कि एक गरीब सिख के घर चिड़िया का जोड़ा रहता था।वो उस घर से आटा,दाल अपनी चोंच में फंसाकर गुरू के लंगरों में लाकर डालते थे तो इस तरह उस गरीब सिख की गरीबी कट गई।मैं भी बहुत गरीब हूँ।घर में खाने के लिए आटा भी नहीं।कल बेटा थोड़ा सा आटा लाया था,उसी में से कुछ आटा मैं माचिस की डिब्बी में डालकर गुरू के लंगरों के लिए लाई हूं।
उसकी यह भावना देखकर बाबा जी की आंखों में आंसू आ गए।बाबा जी ने खुश होकर कृपा की और उस माता की गरीबी काट दी।अब उस माता के घर बहुत धन है कोई कमी नहीं।अब वो माता हर पहली तारीख को दीवान वाले दिन यथाशक्त रसद गुरू घर भेंट करके श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का शुक्राना करती है।
बाबा जी ने अपने कर कमलों द्वारा,पर्यावरण की शुद्धता के लिए बेअंत पेड़ लगवाए,जिनमें पीपल,बरगद,बेरी,सागौन,शीशम,पापुलर,आम,सफेदा,पाखर,नीम आदि प्रमुख हैं।बाबा जी ने भांति-भांति के फूल-फुलवाड़ी भी लगवाई है।बाबा जी किसी भी पेड़ को कटवाने के सख्त खिलाफ थे।
गुरूद्वारा साहिब ईशर प्रकाश वरियामसर पवारगढ़ अशोकनगर एम.पी.
सन् १९९३ में श्रीमान संत बाबा गुरदीप सिंघ जी महाराज कलयुगी जीवों का उद्धार करते हुए पहली बार शिवपुरी पहुंचे।
कबीर सेवा कउ दुइ भले एकु संतु इकु रामु।।
रामु जु दाता मुकति को संतु जपावै नामु।।
यहाँ हर साल सत्संग करते हुए १९९६ में अशोकनगर आए।बेअंत सत्संग किए घर-घर जाकर और संगत को प्रेरित किया।बाबा जी दीवानों में अकसर ये धारणा पढ़ते थे- कावां कुत्तेयां ते गधेयां दी जूनी पैणगे जिनां ने ना गुरू धारेया।भाई अमृत छको, गुरू वाले बनो- अमृत-अभिलाषी संगत ने नाम लिखवाने शुरू कर दिए।
बाबा जी यह सबद वार के रुप में पढ़ते।
रामकली वार पातशाही दसवें की
हरि सॅचे तखत रचाइआ सतसंगत मेला।
नानक निरभउ निरंकार विच सिधां खेला।
गुर सिमर मनाई कालका खंडे की वेला।
पीवहु पाहुल खंडेधार होइ जनम सुहेला।
गुर संगत कीनी खालसा मनमुखी दुहेला।
वाह वाह गोबिंद सिंघ आपे गुर चेला।
उपरांत अमृत संचार किया।जिस समय अशोकनगर में ५000 सिख थे उनमें से पैंतीस सौ प्राणी अमृत छककर गुरू वाले बने।फिर सन् २00४ में सिख संगत ने बाबा जी को यहां गुरूघर बनाने के लिए विनती की।उन गुरसिखों के नाम- स.मुख्तियार सिंघ,स. गुरमुख सिंघ,स.पाल सिंघ,स.जोगा सिंघ,स. बलवीर सिंघ।बाबा जी ने विनती परवान करते हुए पांच सिंघों को साथ लेकर नींव पत्थर रखा।
इस गुरूद्वारा साहिब में अतिसंुदर बने दरबार साहिब में हर वक्त पुरातन मर्यादा अनुसार श्री अख्ंाड पाठ साहिब और साथ ही श्री जपु जी साहिब की वाणी का पाठ निरंतर चलता रहता है।यहाँ गुरू का लंगर,बच्चों को कथा-कीर्तन-गुरवाणी की शिक्षा,सेवा-सिमरन का अटूट प्रवाह निरंतर जारी है।संगत के रुकने व रहने के लिए रिहायशी कमरे मौजूद हैं।यहां बड़ा दीवान हॉल है,जहाँ साल बाद महान गुरमत समागम और अमृत संचार होता है।यहां हर महीने की पांच तारीख को सत्संग होता है।हर रविवार को संगत श्री सुखमनी साहिब का पाठ करती है।इस स्थान पर गुरू महाराज जी के गुरू-पर्व समय-समय पर मनाए जाते हैं।
हर साल संत बाबा निधान सिंघ जी के गांव नडालों से नगर कीर्तन श्री हुजूर साहिब जी नांदेड जाते हुए रात्रि विश्राम गुरूद्वारा ईशर प्रकाश वरियामसर में किया जाता है।समूह इलाका सिख संगत बड़े प्रेम और उत्साह के साथ सेवा करके अपना सौभाग्य समझती है।
बाबा जी ने अपने कर कमलों द्वारा,पर्यावरण की शुद्धता के लिए बेअंत पेड़ लगवाए,जिनमें पीपल,बरगद,बेरी,सागौन,अशोक,खैर,आंवला,आम का बाग,नीम आदि प्रमुख हैं।बाबा जी ने भांति-भांति के फूल-फुलवाड़ी भी लगवाई है।बाबा जी किसी भी पेड़ को कटवाने के सख्त खिलाफ थे।